SHEOHAR*बीमार अस्पताल, ग़ायब दवाएं: शिवहर सदर अस्पताल में इलाज नहीं, मिलती है केवल पर्ची
> “जब अस्पताल ही बीमार हो जाए, तो मरीज़ को बचाने भगवान भी रेफर कर दिए जाते हैं।”
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जनसुराज नेता सुधीर गुप्ता का कहना है कि
शिवहर का सदर अस्पताल "सरोजा सीताराम" खुद इलाज का मोहताज हो चुका है। हाल ही में 12 साल की बच्ची वंदना कुमारी को आंखों की जलन और गिटकन की शिकायत पर अस्पताल लाया गया, लेकिन इलाज के नाम पर उसे सिर्फ़ एक सरकारी पर्ची थमा दी गई—दवा नहीं मिली।
डॉक्टर ने पांच दवाएं लिखीं—अमॉक्सिसिलिन सिरप, मोक्सीफ्लॉक्सासिन आई ड्रॉप, क्लोरैम्फेनिकोल, इबुप्रोफेन और लेवोसेट्रीज़िन। इनमें से तीन जरूरी दवाएं अस्पताल की फार्मेसी में नहीं थीं। जवाब मिला—“स्टॉक में नहीं है।”
सरकारी "निःशुल्क दवा योजना" की यह असलियत है—नाम पर सबकुछ, ज़मीन पर कुछ नहीं।
गरीब मरीज़ दवा के लिए अस्पताल आते हैं, मगर यहाँ उन्हें सिर्फ़ खाली हाथ और निराशा मिलती है। पर्ची पर लिखी दवाएं बाज़ार से खरीदो, नहीं तो बीमारी खुद ही झेलो।
यह कोई एक मामले की बात नहीं। यह पूरे स्वास्थ्य सिस्टम की नाकामी की कहानी है। अस्पताल में इलाज कम, लीपा-पोती ज़्यादा है। अधिकारी नदारद, जवाबदेही गायब।
स्वास्थ्य विभाग की हालत ऐसी है कि उसे ही आईसीयू में भर्ती करने की ज़रूरत है। आने वाले दिनों में अस्पताल के बाहर यह बोर्ड लगाना पड़ेगा—
> "यहाँ दवा नहीं, केवल संवेदना मिलती है। कृपया भगवान से संपर्क करें।"
अगर सरकार अब भी नहीं जागी, तो ‘स्वस्थ भारत’ का सपना सिर्फ एक मज़ाक बनकर रह जाएगा।